राख..
राख..
राख...
तेरी राख हूँ मैं
ना ख़ाक हूँ मैं
कोलाहल हूँ
मैं हलचल हूँ
तेरी आँखों से बहता रहा,
जो आंसू अविरल अविरल हूँ !!
तेरे अंदर का विष रग रग में,
ज्वाला बनकर बहता है,
झूठ है ये कि हर कोई ग़म,
ख़ामोशी से सहता है !!
तेरा अंतस हूँ, तेरा साहस हूँ,
मैं दया की कोई भीख नहीं,
जो मुझको छूलेगा कोई,
तो दूँगी सजा, मैं सीख नहीं !!
मेरी ख़ामोशी में छुपा है जो,
वो खंजर तू ना देख सका,
देखा मुझको अभी ऊपर से,
भीतर से तू ना देख सका !!
मेरे पंख नहीं, नख है ये मेरा,
तुझे रूह तलक ये नोचेगा,
डर जायेगा तू जब जब भी,
मेरे बारे में सोचेगा !!
बन जाउंगी दुर्गा मैं,
जो दानव का तू रूप धरे,
मैं बेटी हूँ और माँ भी हूँ,
ना करना मेरी लाज परे !!
तेरा आज है क्या, तेरे कल को भी,
स्याही सा काला कर दूँगी,
जो आन पे मेरी हाथ धरे,
तो दर्द से तुझको भर दूँगी !!
बचने की कोशिश कितनी कर,
मुझसे ना बच पायेगा,
मेरा दामन छुएगा जो,
मेरी ज्वाला से जल जायेगा !!
जो आंसू देखे बचपन से,
जल तप के वो अंगार बने,
बस क्रोध वीभत्स और रौद्र बचे,
जो अब मेरा श्रृंगार बने !!
चूर चूर और चीर चीर,
मेरी माँ का दामन तार किया,
ना सोच घाव ये तन का है,
तूने अंतर्मन पे वार किया !!
पर मैं वो बेबस डाल नहीं,
तेरे छूने से मुड़ जाये जो,
मैं काल हूँ तेरा, गाल हूँ तेरा,
प्राण निकाल उड़ जाए जो !!
मैं शीतल हूँ और चंचल भी,
माँ के दिल का चैन भी हूँ,
मैं गर्ला हूँ और चपला भी,
मैं क्रोधित जलते नैन भी हूँ !!