रोटी के खातिर..
रोटी के खातिर..
(1)
चलो...!
चलते हैं..
अब अपने-अपने
कर्मक्षेत्र में,
या.....,
बातें ही करेंगे..?
करें साँझ के...
रोटी का इंतज़ाम,
सर से पाँव तक
ढका रहे तन
उसके लिए एक चादर,
और...
मन प्रफुल्लित रहे
उसके लिए मुट्ठी भर प्यार और
ढेर सारा
अपनेपन का प्रबंध..!!
(2)
दो जून की
रोटी मिलती रहे
इसके लिए
चंद खनकते
सिक्कों का
इंतज़ाम किया जाए..
यह कहते हुए वह
आगे को बढ़ गई।
मैंने...!
देखा था...,
उसकी आँखों में
उसकी बेबसी को,
अपने बच्चों की ख़ातिर
मुट्ठी भर खुशियाँ
खरीदने के लिए
खुले बाज़ार में
मता -ए -कूचा बनते हुए.....।