रूप का चाँद..!
रूप का चाँद..!
गुरूर है
किस बात का...?
चाँद हो..!
तो क्या..?
आज पूनम
तो कल
अमावस भी तो...!
ढलेगा तो फिर..?
इधर सियाह अंधेरा
उधर..
अधर में झूलती ज़िंदगी
फिर...
किसका अभिमान
कैसा आकर्षण
और..
काहे की दुनियादारी
तो..
सहज बनो
सरल और सरस बनो
ओ..!
सौंदर्य की मल्लिका
मन से खूबसूरत रहो..!!
