सौंदर्य
सौंदर्य
सुन्दर अधर मादक मधुर मन मोहना श्रृंगार है।
नीरज नयन अंजन विलोचन में बसे संसार है।
अतुलित-अपरिमित रूप वर्णन है कठिन मेरे लिये।
चंचल चपल चितवन तिहारे रूप का आधार है।
काली घटा से झाँकता ज्यूँ चाँद इतराते हुये।
यूँ देखती हो तुम मुझे निज केश लहराते हुये।
कोमल कमल-दल की कमर लचके तिहारी चाल से।
गति काल की भी थम गयी जब तुम रुके जाते हुये।
छूकर तिहारी श्वास को सुरभित पवन बहने लगी।
संसार में संगीत सा वाणी मधुर कहने लगी।
कछु और ना माँगा करूँ इच्छा नहीं अब शेष है।
कमनीय मंजुल छवि तिहारी चित्त में रहने लगी।

