दिया बहुत
दिया बहुत
दिया बहुत मैंने
जो तुमने कहा तुम्हें चाहिए
इक बार देकर देखो
जो मुझे तुमसे चाहिए
होता होगा
आधा चांद भी खूबसूरत
मगर मुझे तुमसे
मोहब्बत पूरी चाहिए
चांद की तरह घटना बढ़ना
मंजूर नहीं
इश्क़ पूर्णिमा नहीं तो
अमावस ही चाहिए
बदलता मौसम
अब दिल को रास नहीं आता
टिकती धूप नहीं तो
बरसता आसमां ही चाहिए
बेख्याली में दिल मेरा तोड़
बेखबर रहने वाले
तेरे ख्यालों में भी अब
मुझे अपना ख्याल चाहिए
मेरी नाराज़गी को भी मिले
पहचान तुझसे
रुठूँ तो तुझमें
मुझे मनाने की जिद चाहिए
आंखों में दिखे इक दूजे का
दिल धड़कते हुए
इश्क़ को बस
यही दीवानगी यही सुकून चाहिए।