ग़ज़ल
ग़ज़ल


जिसे तुम इश्क कहते हो उसे हम जान कहते हैं।
शिद्दत से निभाए कौल को हम ईमान कहते हैं।
जहां नफरत नहीं रहती वहां आनंद रहता है।
सुख के इस समंदर को खुशी की खान कहते हैं।
ये जीवन चार दिन का है व्यर्थ में क्यों गंवाए हम।
जिया औरों की खातिर हम उसे इंसान कहते हैं।
बहुत बीती रही थोड़ी ये भी अच्छे से गुजर जाए।
इसी हसरत में जीने को रब का वरदान कहते है।
सभी में नूर है रब का यह हमने जब से समझा है।
दुनिया तब से लगे अपनी इसी को ज्ञान कहते हैं।