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S N Sharma

Abstract Classics

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S N Sharma

Abstract Classics

शाम सुरमई

शाम सुरमई

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मेरे मित्रों तुम्हारे दम पर ही तो है दुनिया मेरी रोशन। चले भी आओ उसी तरह, जैसे तुम्हारी याद आती है। गुजिस्ता चंद दिन जो साथ मिल के हमने गुजारे थे। उन्हीं यादों की खुशबू आज भी दिल को लुभाती है। शरारत तुम किया करते थे और मुझको डांट पड़ती थी। गले में डाल बाहें मुझे मनाने की कहानी याद आती है। बंक अक्सर लगाकर क्लास से पिक्चर देखने जाना। परीक्षा में चीटिंग से पास होने की रवानी याद आती है। उस दिन जब लड़ाई में सड़क पर मुझे गुंडों ने घेरा था। उनसे भिड़ के मुझको बचाने की कहानी याद आती है। उम्र के साथ भले ही हम बिछड़े मगर यादें नहीं बदलीं। अकेले जब भी बैठे हैं तो बस तुम्हारी याद आती है। शिवा भोपाल    


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