तुम कहां मेरे रहे।
तुम कहां मेरे रहे।
जब तक मतलब था मुझसे साथ तुम मेरे रहे।
निकालने के बाद मतलब, तुम कहां मेरे रहे।
लोक और परलोक के सारे बहाने बना कर
उस किनारे चल दिए तुम साथ कब मेरे रहे।
सांझ जब ढलने लगे रात जब होने को हो।
साथ साया छोड़ देता तुम भी कहां मेरे रहे।
मैं इसे मतलब परस्ती कैसे कहूं तुम ही कहो।
स्वार्थ से दुनिया बंधी ,कुछ स्वार्थ भी मेरे रहे।
जिंदगी की आखिरी मंजिल खड़ी है सामने।
चल दिए सब छोड़कर, सपने कहां मेरे रहे।
शिवा
भोपाल
