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kiran singh

Romance

4  

kiran singh

Romance

सम्पूर्ण पुरुष

सम्पूर्ण पुरुष

4 mins
409


जिसमें दुनिया की

सारी खूबसूरती समाहित है

जो एक ऐसा दर्पण है

जिसमें देखते हुए

मुझे अपने

खूबसूरत होने का

दंभ हो जाता है

वह हैं तुम्हारी

आँखें


जिन्हें छूकर

अमिय पान सी

तृप्ति होती है

मन तरंगें

हो जातीं हैं

मदहोश

अंकित करते हैं

सृजन के चिन्ह

देकर एक आयाम

अमर करने के लिए

वो हैं तुम्हारे

अधर

संसार का सबसे सुकुन

देने वाला स्थल

जिसपर

अपना सर रखकर

पा लेती हूँ निजात मैं

समस्त पीड़ाओं से

वो है तुम्हारा

कंधा

जिनके स्पर्श मात्र से

रोमांचित हो उठता है मेरा

रोम – रोम

जो लिखते हैं भाग्य रेखाएँ

अनगिनत

उन्हें चूमकर

मेरे अधर

देखते हैं बार-बार

लकीरों में

खुद को

वो हैं

तुम्हारे हाथ

सागर से भी गहरा

जिसमें कितनी ही

प्रेम तरंगें

उठती और मिटती रहतीं हैं

जिसमें डूब कर

तृप्त हो जाता है

मेरा मन

अक्सर ही

वह है

तुम्हारा

हृदय

वीणा के सुर से भी मधुर

जो झंकृत कर देती हैं

मुझे

हमेशा ही

विशेष स्त्री होने का

आभास करातीं हैं

इसलिए

बार-बार

बात करने का

जी चाहता है

तुमसे

वो है

तुम्हारी आवाज़

सच में

तुम दुनिया के 

सम्पूर्ण पुरुष हो !


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