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kiran singh

Romance

4  

kiran singh

Romance

सम्पूर्ण पुरुष

सम्पूर्ण पुरुष

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जिसमें दुनिया की

सारी खूबसूरती समाहित है

जो एक ऐसा दर्पण है

जिसमें देखते हुए

मुझे अपने

खूबसूरत होने का

दंभ हो जाता है

वह हैं तुम्हारी

आँखें


जिन्हें छूकर

अमिय पान सी

तृप्ति होती है

मन तरंगें

हो जातीं हैं

मदहोश

अंकित करते हैं

सृजन के चिन्ह

देकर एक आयाम

अमर करने के लिए

वो हैं तुम्हारे

अधर

संसार का सबसे सुकुन

देने वाला स्थल

जिसपर

अपना सर रखकर

पा लेती हूँ निजात मैं

समस्त पीड़ाओं से

वो है तुम्हारा

कंधा

जिनके स्पर्श मात्र से

रोमांचित हो उठता है मेरा

रोम – रोम

जो लिखते हैं भाग्य रेखाएँ

अनगिनत

उन्हें चूमकर

मेरे अधर

देखते हैं बार-बार

लकीरों में

खुद को

वो हैं

तुम्हारे हाथ

सागर से भी गहरा

जिसमें कितनी ही

प्रेम तरंगें

उठती और मिटती रहतीं हैं

जिसमें डूब कर

तृप्त हो जाता है

मेरा मन

अक्सर ही

वह है

तुम्हारा

हृदय

वीणा के सुर से भी मधुर

जो झंकृत कर देती हैं

मुझे

हमेशा ही

विशेष स्त्री होने का

आभास करातीं हैं

इसलिए

बार-बार

बात करने का

जी चाहता है

तुमसे

वो है

तुम्हारी आवाज़

सच में

तुम दुनिया के 

सम्पूर्ण पुरुष हो !


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