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kiran singh

Others

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kiran singh

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स्त्री विमर्श

स्त्री विमर्श

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विषय है स्त्री विमर्श

ढूँढ रही हूँ शब्द ईमानदारी से

कि लिखूं स्त्रियों की असहनीय पीड़ा

दमन, कुण्ठा

कि जी भर कोसूं पुरुषों को

कि जिन पुरुषों को जानती हूँ उन्हें ही

कुछ कहूँ भला बुरा

पर


सर्व प्रथम पुरुष तो पिता निकला

उन्हें क्या कहूँ

वह तो मेरे आदर्श हैं

फिर सोचा

चलो आगे दूसरे को देखती हूँ

अरे वह तो भाई निकला

जिसकी कलाई पर राखी बांधती आई हूँ

प्रति वर्ष

अब आती हूँ पति पर इन्हें तो छोड़ूगी नहीं

लड़ने की सोचती हूँ

कि कितना झेलना पड़ता है मुझे घर में

लेकिन लड़ूँ तो कैसे

बेचारे के पास समय और हिम्मत ही कहाँ बची है लड़ने के लिए

सारी ऊर्जा तो दफ्तर में ही खत्म हो जाती है

फिर थके हारे हुए इंसान से

लड़ूँ तो कैसे लड़ूँ…?

लिखना तो है ही

आखिर स्त्री विमर्श है

चलो बेटों को ही कोसती हूँ

पर क्या करूँ

मेरी तो आँखों पर तो पट्टी चढ़ गई है

पुत्र में तो कोई दोष दिखाई ही नहीं देता

फिर किस पुरुष को कोसूं ?

अरे, अरे क्यों चिंतित हो किरण

बहुत आसान है अजनबी पुरुषों को

कोसना

आखिर बात स्त्री विमर्श की है

कोसो जी भर कर



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