बिदाई की घड़ियाँ
बिदाई की घड़ियाँ
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जब भी याद आती बिदाई की घड़ियाँ।
भर आती हैं मेरी आँसू से अँखियाँ।।
बीता था बचपन जिस आँगन में मेरा।
कैसे भूल जाऊँ वो नैहर की गलियाँ।
खींचती है वो डोरी जो बांधा था मैंने।
बड़े नेह से अपने भैया को राखियाँ।।
वो लड़ना झगड़ना बेमतलब का बहना।
याद कर आँखों से झर गयीं अश्रु लड़ियाँ।।
संग जिनके मैं खेली थी कित कित और गोटी।
बहुत याद आती हैं बचपन की सखियाँ।।
हे ममता की मूरत हे देवी की सूरत।
कहाँ पाऊँ माँ तेरी आँचल की छइयाँ।।
जैसे ही पिता ने किया दान मेरा।
समझी मैं तभी सच पराई हैं बेटियाँ।।