STORYMIRROR

kiran singh

Others

4  

kiran singh

Others

बिदाई की घड़ियाँ

बिदाई की घड़ियाँ

1 min
409

जब भी याद आती बिदाई की घड़ियाँ।

भर आती हैं मेरी आँसू से अँखियाँ।।

बीता था बचपन जिस आँगन में मेरा।

कैसे भूल जाऊँ वो नैहर की गलियाँ।


खींचती है वो डोरी जो बांधा था मैंने।

बड़े नेह से अपने भैया को राखियाँ।।

वो लड़ना झगड़ना बेमतलब का बहना।

याद कर आँखों से झर गयीं अश्रु लड़ियाँ।।

संग जिनके मैं खेली थी कित कित और गोटी।

बहुत याद आती हैं बचपन की सखियाँ।।

हे ममता की मूरत हे देवी की सूरत।

कहाँ पाऊँ माँ तेरी आँचल की छइयाँ।।

जैसे ही पिता ने किया दान मेरा।

समझी मैं तभी सच पराई हैं बेटियाँ।।


Rate this content
Log in