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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Romance

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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Romance

किताब का मोरपंख

किताब का मोरपंख

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जानती हो, 

क्यों रखा है तुम्हे मोर पंख बनाकर, 

किताब के पन्नों के बीच सलीके से? 


रख सकता था तुम्हे और तुम्हारे उस

मखमल सम मृदुल एहसास को, 

सुर्ख लाल गुलाब बनाकर, 

किताब के उन पन्नों के मध्य, 

जिन्हें पढ़ प्रेम स्मृतियाँ भी चटख लाल हो जाती हैं |


पर समय की धूलि कालांतर में, 

मुरझा देती उस गुलाब स्मृति को, 

गवारा नहीं मुझे तुम्हारे प्रेम का कभी यूँ मुरझाना, 

क्योंकि देखा है मैंने सिर्फ इस प्रेम वसंत की कलिका का मुस्काना, 


इसलिए स्मृतियाँ सहेज दी मैंने 

रेशमी कोमल मोर पंख बना कर, 

ऋतु परिवर्तन से परे बनकर, 

सदाबहार कायनात तक, 

मेरे हाथों की छुअन से गुलज़ार, 

सदाबहार, सदाबहार युगों युगों तक! 



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