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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Tragedy

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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Tragedy

मैं खुद से पूछा करता हूं!

मैं खुद से पूछा करता हूं!

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मैं मुझमें अब हूं कहाँ,

मैं खुद से पूछा करता हूं!


जेबों से बिखरे ख़्वाब यहां,

तंग गलियों में उलझी राह यहां,

इन सब में मैं हूं कहां?

मैं खुद से पूछा करता हूं!


भोलापन मासूम सा लहजा अब है कहां,

दुःख से तकल्लुफ रख पाये इंसां, अब है कहां,

मैं खुद से पूछा करता हूं!


सागर में दरिया दीवानी अब है कहां,

हिंसा में लिपटी, चादर में सिमटी,

इंसानियत अब रही कहां,

मैं खुद से पूछा करता हूं!


इंसान में इंसां है बचा कहां,

आग भी रौशन है कहां,

मैं खुद से पूछा करता हूं!


छिपाता हूँ मैं, हैवानियत के भय को, 

निडरता के साये तले,

क्या वाकई बेख़ौफ़ हूँ मैं,

मैं खुद से पूछा करता हूं!



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