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shaily Tripathi

Tragedy

4.8  

shaily Tripathi

Tragedy

देश की व्यथा

देश की व्यथा

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548


देश ने अपने सही बेहद व्यथा

देश को देशज जनों ने ही ठगा 

दासता बरसों रही है इसलिए 

अनियंत्रित भीड़ है इस देश में 

रीढ़ में हड्डी नहीं बाकी कोई 

स्वयं को वश में नहीं करते कभी 

नियम सरकारी नहीं जो मानते हैं 

दोष वह सरकार पर ही डालते हैं 


व्यक्ति को सत्ता स्वयं की है मिली 

दूसरी सत्ता निजी परिवार की 

स्वयं और परिवार को यदि ज्ञान देते 

नाक-मुँह को मास्क से यदि ढांक लेते 

वर्ष भर से स्वास्थ्य पर यदि ध्यान देते 

श्वास का व्यायाम करते भाप लेते 

भीड़ में घुसते नहीं, दूरी बनाते 

लॉकडाउन के बिन

ा भी शांत रहते 


फैलती ना छूत बस्ती, गाँव, घर में 

सैकड़ों, लाखों नहीं बीमार होते 

स्वास्थ्य कर्मी रात-दिन खटते नहीं 

स्वास्थ्य के साधन यूँ ही घटते नहीं 

मृत्यु हर घर में नहीं यूँ नृत्य करती 

कोख माँओं की नहीं यूँ ही उजड़ती

जल रहे ख़ुद की लगाई आग में जो

दे रहे हैं गालियाँ सरकार को वो 


'जीवधारी देश', ख़ुद को मानते हैं 

राज, सत्ता सब बदलना चाहते हैं 

काश वो ख़ुद को बदल लेते ज़रा 

दोष ख़ुद में ढूँढ लेते स्वल्प सा 

देश क्या ब्रह्माण्ड भी जाता बदल 

यदि 'बुद्धिजीवी' देश का जाता सुधर।



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