उन्नति की राहें
उन्नति की राहें
बे-रोजगार वह ही हैं अब, जिनको ख़ुद पर विश्वास नहीं
नहीं भरोसा स्वरोजगार पर, ब्रिटिश-काल से दास अभी
याचक बने राह तकते हैं, सरकारी नौकरियों के
"निकृष्ट चाकरी" बता गए हैं, जब की पुरखे सदियों से
सरकारी नौकर बन कर के,भीख तुल्य वेतन पाओ
उससे अच्छा नहीं, स्वयं का धंधा, उद्यम चमकाओ?
सरकारी नौकर विकास की, दिशा नहीं बन सकते हैं,
बंधे कायदे में ऊँची, उड़ान नहीं भर सकते हैं,
अपने भाग्य विधाता ख़ुद बन,भाग्य देश का चमकाओ,
टाटा, बिड़ला, रुइया से भी, आगे खूब निकल जाओ
देखो देश प्रगति के पथ पर, तीव्र वेग से दौड़ रहा,
विकसित देशों को भी अब तो, अपने पीछे छोड़ रहा,
राहें हैं असीम उन्नति की, उन राहों पर पाँव धरो,
बाहें नहीं, पंख फैलाओ, तुम ऊंचे आकाश छुओ,
सकल घरेलू उत्पादों को, इतना अधिक बढ़ाओ तुम,
अस्त्र-शस्त्र और युद्दपोत तक, अपने आप बनाओ तुम,
खाद्य तेल, आणविक ऊर्जा, बाहर से आयात न हो,
तकनीकी उन्नत हो इतनी, भारत से निर्यात करो,
तुम हो शक्तिवान, तेजस्वी, भारत के रखवाले हो,
अपनी कीर्ति ध्वजा, मंगल ग्रह तक, पहुंचाने वाले हो,
तुम चाहो तो देश नहीं, संसार बदल कर रख दोगे,
भोगी हुई दासता का, इतिहास बदल कर रख दोगे।