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shaily Tripathi

Romance

4  

shaily Tripathi

Romance

बिरही बसंत

बिरही बसंत

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जब याद तुम्हारी आती है

मन बिरहा से जल जाता है

मधुमय बसंत मेरे मन में 

इक अनबुझ प्यास जगाता है


वो दिन भी कैसे मादक थे

जब हम-तुम थे इक बस्ती में

दिन फूलों सा महका रहता

रातें कटती थीं मस्ती में


अब भी वह प्यारी बस्ती है

दिन है, शामें हैं और रात

तन सुलग रहा है बिन तेरे

बिरहन साँसों में सुस्ती है 


हैं तुम्हें पता सारी बातें 

फिर भी क्यों रार बढ़ाते हो 

महके-बहके इस मौसम में 

बेगाने बन तड़पाते हो ।



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