किस ग्रह पर? (Day30)
किस ग्रह पर? (Day30)
सोचती थी कभी मैं भी दूसरे ग्रह पर जाऊँ,
अंतरिक्ष से धरती कैसी दिखती है समझ पाऊँ
सोचती रहती थी रात-दिन
धरती पर बसे रहने से क्या है हासिल?
यहाँ तो कुत्ते-बिल्ली, गधे सभी रहते हैं
इन्सान की क़ीमत कम, ये बेशक़ीमती लगते हैं
यही सोच कर मैंने जुगाड़ लगाया
अन्तरिक्ष यान बनाने का हिसाब बैठाया
एक टाइटेनरियम का खोखला ले आयी
आँगन के पिछले कोने में उसकी जगह बनायी
सोचा था बनाऊँगी अंतरिक्ष यान
यात्रा में जाऊँगी मंगल और चाँद
कल पुर्जे लगाये, तैयारी पूरी थी
पावर सप्लाई के लिए बड़ी मजबूरी थी
चिंता में बैठी थी कि जादू सा हो गया
मेरा चंद्रयान ख़ुद से चालू हो गया
झपट कर मैं उस पर जा चढ़ी थी
मस्त हवा में घूमती उड़ती रही थी
अचानक कहीं से रौशनी उठी थी
यान को अपनी ओर खींच रही थी
बेबस थी नियन्त्रण नहीं चल रहे थे
सामान उड़ रहे थे इंजन ठप पड़े थे
सामने से एक बड़ा यान आया
दरवाज़ा खुला मेरा यान उसमें समाया
चक्कर सा आ गया, बेहोश हो गयी
शायद मैं किसी और ग्रह पर पहुँच गयी
भ्रमित हूँ चकित हूँ कुछ सूझता नहीं है
आगे क्या लिखूँ मुझे कुछ बूझता नहीं है।