होली क्या बोली
होली क्या बोली
क्या होली सिर्फ़ चेहरे पर रंग लगाती है?
शरीर और चूनर को रंग से भिगाती है?
गुझिया, पुए और मिठाइयाँ खिलाती है?
होली जो चेहरे पर रंग लगाती है
आपकी रोज की पहचान छुपाती है,
ओढ़ी हुई अस्मिता,
मान और अभिमान से मुक्ति दिलाती है
थोड़ी देर के लिए आपको,
खालिस, खरा इन्सान बनाती है,
बंधनों से दूर, सहज, सुखद क्षितिज में ले जाती है
आपको को आप से अलग कर
मुक्ति का एहसास कराती है
हौले से आपको उड़ा ले जाती है
मौज और मस्ती से परिचय कराती है
भंग और रंग से तरंगित करती है
दुःख और विषाद को भूलने में मदद करती है
बंधनों को खोलती है, हाथों को रंग डुबोती है
कहती है रंग लो, सभी सपनों को
आज को, कल को आगत भविष्य को
रंगीन कर लो आत्मा और विश्वास को
भावनाओं को गुलाल सा उड़ने दो
सुर में गाओ मस्त जीवन के राग को
डाल दो विषाद और चिन्ता को
होलिका की आग में,
उन्हें भस्म हो जाने दो
आशा, प्रेम और विश्वास के रंगों को
बाल्टी में घोल दो,
मिटा कर सब की अलग पहचान
बहुरंग से सभी को रंग जाने दो
गले लगा लो दोस्तों और दुश्मनों को
भेद-भाव, गिले-शिकवे मिट जाने दो
रंगों की मस्ती को छाने दो
जोगिरा - कबीर गाने दो
सबको हँस लेने दो, गुनगुनाने दो
होली का ख़ुमार चढ़ जाने दो
होली का ख़ुमार चढ़ जाने दो।