जी हाँ वह मेरे पिता थे
जी हाँ वह मेरे पिता थे
रोज देखता था उन्हें भरी दोपहरी में भी,
साइकिल चलाकर बाज़ार जाते हुए।
पर उन्होंने कभी भी उफ़ तक नहीं की।
हम तो आज ए सी गाड़ी में चलकर भी,
बीच बीच में पसीना पोंछ लिया करते हैं।
जी ठीक समझा आपने, वो मेरे पिता थे।
साल में पांचों भाई बहन को एक बार,
नये कपड़े मिलते थे और हम खुश थे।
क्यूँकि बाज़ार वह साथ लें कर जाते थे,
सबको एक एक ड्रेस ख़ुद दिलवाते थे।
अपने लिए तो कभी कुछ नहीं लिया,
जी ठीक समझा आपने, वो मेरे पिता थे।
अष्टमी के मेले में, साथ घुमाने लें जाते थे,
पांचों भाई बहन को, एक खिलौना दिलाते थे।
बात खिलौने की नहीं, साथ जाने की है,
आजकल तो बच्चे गाड़ियां भी ख़ुद लें आते हैं।
कभी उन्होंने किसी बात की शिकायत नहीं की,
जी ठीक समझा आपने, वो मेरे पिता थे।
कुछ कमियाँ थी जिन्दगी में, पर खुशियाँ
थी,
आज सब कुछ है, पर वह खुशियाँ न रही।
जरूरतें तो बहुत थी, पर छोटी छोटी सी थी,
नाश्ते में स्वाद था, रोटी संग था अचार दही।
साथ बैठ कर हमारे संग लूडो खूब खेलते थे,
जी ठीक समझा आपने, वो मेरे पिता थे।
बाहर से कड़े खूब थे, पर अंदर नरम भी खूब थे,
गर्मी में वो छाँव थे, तो ठण्ड में सुहानी धूप थे।
अब तो वह नहीं रहे, पर जिन्दगी के उसूल दे गए,
दौलत कम थी, पर बच्चों को उनका वजूद दे गए।
जीवन भर नाम कमाया, हमें अलग रसूख दे गए।
जी ठीक समझा आपने, वो मेरे पिता थे।
ऐसा नहीं कि पितृ दिवस पर ही उनको याद किया,
याद तो सदा रहते है, कभी कभी रोता है ये हिया।
पर किससे कहूँ मन की व्यथा, कौन सुनें यह बात,
रोता हूँ अब भी कभी कभी, जब आती उनकी याद।
काश आज वह होते पास, शायद वे आँसू पोंछ लेते,
जी ठीक ही समझा आपने, वो मेरे पिता ही तो थे।