Pooja Agrawal

Inspirational

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Pooja Agrawal

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जीवन का मूल - मंतर

जीवन का मूल - मंतर

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मांँ के आंचल में उमड़ता जो वात्सल्य है 

पिता के बाजुओं में झूलता अनुराग है 

बहन की अठखेलियाँ, मन में जूही खिलाती हैं 

भाई से हर नोकझोंक, मीठा अनुभव कराती हैं 

सखा से खेल सारे उत्साह हैं, आनंद हैं

गुरु के सारे बोल, जीवन का गूढ़ ज्ञान है 

मनमीत के साथ गुजारा हर पल बेहद खास है 

प्रभु की भक्ति में आलोकिक, अनूठा एहसास है 

कर देता तन - मन की शुद्धि और सात्विक व्यवहार है 

खुशी के हर पल बिखरे कभी लोरी, कभी आंख-मिचोली में 

कभी गुब्बारों की उड़ान में, कभी चाभी वाले खिलौने में 

कभी स्कूल की पिछली बेच में, वो कॉलेज की हम - जोली में 

बालक की अट्टहास में, बुजुर्गों की नेमत की उजली झोली में 

कभी दीवाली के सुनहरी दीपों में, कभी रंगो की पावन होली में

जब कोई अपना सारे द्वेष भूलकर प्रेम से गले लगाता है 

अहंकार की गांठें घुलती, मन-अंतर्मन पावन हो जाता है

खुशी की न कोई तोल है, न किसी बाजार में वो बिकती है 

न जात - पात, धर्म मानती, सीधी-सादी और सच्ची है 

फिर भी सुगमता से किसी ड्योढी पर यूँ ही बैठी मिलती है

कभी आँगन में खेलती खिलती, कभी छत पर सूखती है 

दिल से बस आवाज दीजिये, नजरों से पहचान लिजिए 

मुट्ठी में भर लिजिए थोड़ी, थोड़ी दिल में संजो लिजिए 

फिर उसको दोनों हाथों से जगत में यूँ ही बांटा किजिए 

दुःख, दर्द दूसरों के बांटकर खुशियां बढ़ती हैं परस्पर

बन जाते हैं हम पात्र उनके, सूत्रधार होते हैं परमेश्वर 

आत्मसात करो इसे तुम बंधु , है ये जीवन का मूल-मंतर  



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