मृत्यु कड़वी सच्चाई है
मृत्यु कड़वी सच्चाई है
" मृत्यु " कड़वी सच्चाई है।
आँख तेरी फिर क्यों भर आई है।
जिंदगी ने तो सिर्फ बेवफाई निभाई है।
"मृत्यु "ने वफा की रीत सिखाई हैं
जन्म ले मनु किस धुन में विचरता ।
पुण्य भुला कर पाप कर्म करता।
फिर भी जाने क्यों अकड़ता।
दिन-रात इंसा लालच में खोता।
नादान श्मशान में चिता सजाई है।
" मृत्यु " तो कड़वी सच्चाई है।
खाली हाथ मनुज है आता।
अपनी बुद्धि को बड़ा भ्रमराता।
चौरासी के चक्कर में लग जाता।
गरीब लोगों का दिल है दुखाता।
इस कर्म से पर पड़ा हर्षाता।
अपनी आंखों पर झूठ की पट्टी सजाई है।
" मृत्यु " तो कड़वी सच्चाई है।
मां के गर्भ में शिशु जब आता ।
अंदर रह कर बडा दुख पाता ।
बाहर आने की प्रभु से गुहार लगाता ।
सत्य कर्मों की सौगंध वह खाता।
बाहर निकल मन मलीनता मे समाता ।
कैसी उसने यह माया रचाई है।
" मृत्यु " तो कड़वी सच्चाई है।
आंख तेरी फिर क्यों भर आई है।