विधवा पुनर्विवाह
विधवा पुनर्विवाह
यह कहानी शुरू होती है उत्तराखंड के हसीन वादियों में बसे हुए गांव हर्षिल से। हर्षिल गांव अपनी सुंदरता के लिए पूरे भारतवर्ष में जाना जाता है। घने देवदार के वृक्ष, सेब के बागान, ऊंची पहाड़ियों से गिरते हुए झरने ,और कलकल बहती हुई गंगा नदी तथा बर्फीले पहाड़ वातावरण को और भी अधिक सुंदर बना देते हैं। कुल मिलाकर यह प्राकृतिक वातावरण हर किसी के मन को मोह लेता है । लगता है साक्षात स्वर्ग पृथ्वी पर उतर आया है।
शशांक का सपना बचपन से ही शिक्षक बनने का था ।कड़ी मेहनत से परीक्षा पास करने के बाद उसकी पोस्टिंग शिक्षक के पद पर हर्षिल गांव के एक सरकारी स्कूल में हुई । पन्द्रह दिन के अंदर जॉइनिंग करनी थी। जॉइनिंग के दिन नजदीक आ रहे थे । शशांक का दिमाग काम नहीं कर रहा था । यह सब कुछ कैसे मैनेज होगा । वह नीला पर लगातार चिल्ला रहा था। देखो नीला तुमने अभी भी सामान की पैकिंग नहीं की और तुम्हें कुछ जरूरी सामान खरीदना है तो बाजार से खरीद लो । वह गांव है गांव वहां पर खाने-पीने और पहनने के अलावा कुछ भी नहीं मिलेगा । और जॉइनिंग के दिन भी नजदीक आ गए हैं। और तुम्हारी तरफ से कोई तैयारी नहीं है।
नीला ने झुझलाते हुए शंशाक से कहा । ओहो ! शशांक कर तो रही हूं ।और किस तरह से करूं मेरे चार हाथ थोड़े ही है।इंसान हूं मैं मशीन नहीं हूं जो फौरन तुम्हारे सारे काम कर दूं।
शशांक ने कहा ठीक है ठीक है। ज्यादा मत बोलो इतना कहकर शशांक बाहर चला गया । रेलवे टिकट कंफर्म करके ही लौटा सोमवार को 8:00 बजे की हर्षिल के लिए ट्रेन थी दूसरे दिन 7:00 बजे ही शशांक और नीला रेलवे स्टेशन पहुंच चुके थे। ट्रेन आधा घंटा पहले आ चुकी थी । वह झटपट ट्रेन में बैठ गये । ट्रेन अपनी रफ्तार से चली जा रही थी ।रास्ते में दृश्य बढ़े ही सुहावने लग रहे थे । दो दिन का सफर तय करने के बाद में ट्रेन हमारे गंतव्य स्थान हर्षिल पहुंचा दी थी ।
वहां का वातावरण देखकर मैं अचंभित हो गया था । वास्तव में स्वर्ग से कम का आभास नहीं दे रहा था ।
नीला भी बहुत खुश थी । घर को ढूंढने में हमें ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी । स्कूल के प्रिंसिपल ने सरपंच के यहां हमें रहने के लिए कमरा दिला दिया था । मैं बहुत खुश थी और साथ में शशांक भी। इतने प्यारे वातावरण में रहने का जो मौका मिल रहा था । चारों तरफ देवदार के वृक्ष , बर्फीले पहाड़ , कलकल बहती गंगा नदी, सेब के बागान , सब कुछ सपने जैसा प्रतीत हो रहा था।
दूसरे दिन शशांक स्कूल चले गए ।और मैंने अपने सामान को कमरे में ठीक तरीके से करीने से सजा दिया। और फिर नहाने चली गई ।नहाने के बाद शशांक का स्कूल से आने का समय हो चुका था ।
झटपट मैंने शशांक के पसंद का खाना बनाया। फिर सूखे कपड़े लेने बाहर चली गई । मैंने देखा वहां पर 25 -26 साल की मेरी ही हमउम्र की शादीशुदा युवती खड़ी थी सुंदरता में ऐसी इंद्र की अप्सरा की शरमा जाए बातों ही बातों में पता चला की वह सरपंच जी की बहू है।
और उसके पति सेना में जवान है । बहुत ही हंसमुख स्वभाव की थी श्रुति । यही तो नाम था सरपंच जी की बहू का ।शादी को ज्यादा समय व्यतीत नहीं हुआ था । यही कोई 2 महीने पहले ही तो शादी हुई थी । शादी के बाद सरपंच जी का बेटा सेना में लौट गया था ।
इतने में ही शशांक आ गए । और मैं एक प्यारी मुस्कान श्रुति देकर अपने कमरे में आ गई । दूसरे दिन रोने पीटने की आवाज सुनकर सुबह मेरी आंख खुली । तो देखा सरपंच जी के यहां से रोने पीटने की आवाज आ रही है। मैंने जल्दी-जल्दी से शशांक को जगाया और सरपंच जी के यहां भेज दिया । पता चला सरपंच जी का बेटा जो कि सेना में था शत्रुओं से युद्ध करता हुआ मारा गया। श्रुति का तो रो रो कर बुरा हाल हुआ जा रहा था। बेचारी के हाथों की मेहंदी भी नहीं उतरी थी । उस पर से पति से बिछड़ जाने का दुख है।
सरपंच जी के बेटे का शव क्षत-विक्षत हो चुका था शव के टुकड़ों का भी कोई अता पता नहीं था। इसलिए पार्थिव शरीर को लाना पाना नामुमकिन था कुछ निशानियां सेना के अफसर के ने सरपंच जी के घर भिजवा दी थी। इस घटना को एक महीना भी चुका था श्रुति तो जैसे हंसना मुस्कुराना भूल गई थी ।
एकदम पत्थर की मूरत बन गई थी । उस पर किसी भी चीज का कोई असर नहीं होता था जैसे लगता है उसके आत्मा मर चुकी हो । सरपंच जी से उसकी यह हालत देखी नहीं गई और उन्होंने श्रुति का पुनर्विवाह करने का विचार किया । लेकिन श्रुति अपने पति के यादों के सहारे अपनी सारी जिंदगी काटने के लिए तैयार थी ।
इधर सरपंच जी जिद पर अड़े थे कि वे श्रुति की दूसरी शादी करवा कर दम लेंगे ।अभी श्रुति के सामने पूरी जिंदगी बाकी थी । किसी की यादों के सहारे जिंदगी कब तक कटती ।यह बात सरपंच जी भली-भांति जानते थे। उन्होंने श्रुति के लिए अच्छा सा लड़का देखकर अपने हाथों से कन्यादान कर दिया ।सरपंच जी के इस कार्य की गांव वालों ने तहे दिल से प्रशंसा की । वास्तव में हर्षिल गांव के सरपंच जी ने अपनी बहू का पुनर्विवाह करवा के एक जीता जागता उदाहरण देश और समाज के सामने प्रस्तुत किया।