औरत
औरत
तुम क्यों रहते हो खफा खफा
हमने क्या कर दी ऐसी खता
जो तुम उखड़े उखड़े से रहते हो
सारा दोष तुम मुझ पर मढ़ते हो
फिर कहने से क्यों डरते हो
खफा होकर मुझको तकते हो
बनते हो बिगड़ते हो
जाने कितने रंग बदलते हो
क्यों तुम मेरी तन्हाई बन जाते हो
मुझे हर घड़ी तुम रुलाते हो
क्या तुम मुझसे चाहते हो
ना खुलकर कभी बताते हो
बस जली कटी बातें सुनाते हो
क्यों नहीं दो घड़ी पास बैठकर
मुझे प्यार से समझाते हो
मैं औरत हूं
तो इसका मतलब
यह नहीं है कि
सब कुछ सह लूंगी
मुंह से कुछ नहीं कहूंगी
जहर अपमान का पी लूंगी
भूल करते हो तुम
जो तुम ऐसा सोचते हो
अबला नहीं सबला हूँ
आज के बदलते युग की रण चंडिका हूँ
करेगा मेरे अस्तित्व पर प्रहार
उसको मिट्टी में मिला दूंगी
डालेगा जो कुदृष्टि
उसके अस्तित्व को सुला दूंगी
कोमल हूँ यह समझ कर भूल ना करना
औरत को औरत बने रहने देना
उसको ज्वालामुखी बनने के
लिए मजबूर ना करना
यही सब के हित में रहेगा
प्रकृति प्रकृति मुस्कुराएगी
और सुख समृद्धि बहेगी
हां मैं औरत हूं
ईश्वर की अनुपम कृति की छवि हूँ