कलयुगी रावण
कलयुगी रावण
ओ कलयुगी रावण, कभी सुना हमने एक सीता का हरण,
पर आज के युग में, हर दिन, कितनी नारियों का होता चीर हरण।
कितने दुःशासन जन्में हैं देश में, जो नारियों को द्रोपदी बनाते हैं,
उनकी इज्जत की बिखेर चिंदियाँ, दोष परिधानों का बताते हैं।
लाख बुराइयाँ थी उस पुरातन रावण में, पर सीता को नहीं छुआ,
पर आज देखते हैं हम, क्या हर चौराहे पर ऐसा नहीं हुआ।
कितनी दामिनी ,कितनी कामिनी, तिल- तिल हर रोज मरती हैं,
पर समाज की फितरत, फिर क्यूं नहीं आज बदलती है।
नारी सृष्टि की धुरी बताई, क्यों अपमान उसका करते हो,
झर- झर बहते आंसू उसके, क्यों हिसाब ना उनका करते हो।
कैसे मरेगा ये कलयुगी रावण, जिसकी दृष्टि हेय हो गई,
ना सिर उठा जी सकती वो नारी, जो शिकार इनका हो गई।
बदल ले अपनी सोच अरे रावण, तेरा घड़ा पाप का भर गया,
जब रणचंडी बनेगी यह नारी, सोच तेरा नामोनिशान मिट गया।
लक्ष्मण रेखा में नहीं बंधने वाली नारी अब, तलवार अपनी चलाएगी,
कैसे लूट सकेगा इज्जत उसकी, वह तेरा शीश धरा पर गिराएगी।
