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Durga Devi

Others

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Durga Devi

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गिरना

गिरना

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कभी सोचा नहीं था,

कितना गिरेगा इंसान,

इतना कि नजरे ना मिला पाए,

आईने के सामने खुद से ।


क्यों उतारता वह कफन,

जो मिला समय आखिरी पर,

क्यों उन्हें समेट कर,

बिक्री करता बाजार में।


क्यों मर गई इंसानियत,

चंद कागज के टुकड़ों की खातिर,

बेच कफन लगा दिया कलंक,

पूरी मानव जाति पर।


क्या कोरोना का ऐसा भी,

उठाया जा सकता है फायदा,

 लूटपाट, चोरी, डकैती,

  पर आएगा इंसान ।


यक्ष प्रश्न उठता है,

सोचती हूँ बार-बार,

कब जिंदा होंगें इंसान,

कब बचेगी इंसानियत?



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