काव्य-तरंग
काव्य-तरंग
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लहर सुणी थी समंद्र की,बीमारी की लहर सुणी कोन्या,
लोकडाऊन लाग्या दो साल तै, इसकी भी बात सुणी कोन्या।
मजदूर करै थे मजदूरी, रोजी पै संकट कदे आया कोन्या,
दाल - रोटी तै पेट भरै थे,रोटी का संकट कदे आया कोन्या।
टीके लगवा कै, कोरोना ना होवै,इसकी कोए गारंटी कोन्या,
अस्पताल तै घरां क्यूकर जाओगे, इसका भी कोए बेरा कोन्या।
बीमारी बणगी महामारी,आगे का कोए बेरा कोन्या,
फूंक- फूंक कै कदम धरो, जिंदगी का कोए बेरा कोन्या।