बढ़ते चलो
बढ़ते चलो
न हार में ,न जीत में,
न उलझो इन गीत में,
कर्म की राह चुनो,
लक्ष्य पर बढ़ते चलो।
मैं सत्य कहती,हे सखे!
खेल के ही भाव से,
कर्म बस अपना करो,
न अश्रु हार में बहाओ,
न जश्न में सब भूल जाओ।
लक्ष्य पर सदा बढो,
न संघर्षो पर रुको,
संघर्ष संवारेंगे तुझे,
सशक्त बनाएंगे तुझे।
संग खुद के सदा रहो,
न हार कहो,न जीत कहो,
राह लक्ष्य है ये अहो,
बस बढ़ते चलो,बढ़ते चलो।
कभी शूल मिले,
कभी फूल मिले,
कैसा भी ये पथ मिले,
बस बढ़ते चलो,बढ़ते चलो।