एक सुखद बदलाव
एक सुखद बदलाव
ट्रैफिक बहुत जाम था। रीता कुछ बैचेन सी थी, कार जाम में फंसी हुई थी आज ऑफिस कुछ जरूरी मीटिंग थी, सब तैयारी पूरी थी पर उफ्फ ये जाम। लग रहा था कि पूरा दिन ही ले लेगा।
बार बार फोन कॉल, और रीता की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
आखिर एक जिम्मेदार पद पर जो थी वो, पर कर भी क्या सकती थी, ये जाम भी मानव की कुछ कमियां है, सभी को तो जल्दी होगी काम पर पहुंचने की और सबके अपने निजी वाहन। फिर सड़क पर भीड़ तो होनी ही थी।ऑफिस टाइम अलग।
ये तो रोज की ही समस्या थी, पर लगता था कि हल शायद मानव बुद्धि से परे है। आज रीता जाम में फंसे फंसे अनेक पहलुओं पर सोच रही थी। प्रदूषण और जनसंख्या विस्फोट सब यही तो कारण है ट्रैफिक जाम के। और उपाय किसी को सूझता नहीं या उस पर खुद अमल नहीं करना चाहता।
आज मीटिंग थी बाल पोषण पर, बच्चों के गिरते स्वास्थ्य पर और उनके जीवन गिरती नैतिक वैल्यू पर। हल निकालना था आज बाल विकास विभाग को। यह प्रोजेक्ट उसके लिए अहम था, क्योंकि वह दिल से चाहती थी अच्छे समाज की स्थापना। और यही बात उसे बेचैन कर रही थी।
तभी सहसा, एक छोटा सा हाथ कार की खिड़की तक आया और इशारे से पैसा मांगने लगा, रीता चौक कर अपने विचारो से बाहर आई, मैले कुचले कपड़ों में , मुश्किल से से चार या पांच साल का बच्चा, पैसे मांग रहा था, रीता ने देखा अरे इतना छोटा बच्चा, एक बार दस रुपए का सिक्का देने के लिए हाथ बढ़ाया, फिर कुछ सोच कर रुक गई, सोचा कि
ये तो भिक्षावृत्ति को बढ़ावा देना हुआ, ये बच्चा आगे चल कर श्रम का महत्व नहीं पहचानेगा। तुरंत ड्राइवर से बोला, कि तुम गाड़ी लेकर ऑफिस पहुंचना, मैं मेट्रो से आ जाऊंगी और कार से उतरकर उस बच्चे को लेकर पास के एक ढाबे में पहुंची, और उसको खाना खिलाया।
इसके बाद बच्चे को लेकर उसकी झुग्गी की ओर गई, देख कर आश्चर्य हुआ कि उससे छोटे 3और बच्चे थे, उसके भाई बहन।सभी कुपोषित, मां भी कुपोषित। शिक्षा कुछ नहीं, और अन्न का निवाला भी नहीं, जो आता, बच्चों का पिता शराब पी डालता।
अभी तो उसे कुछ न सूझा, एक समय का भोजन तो दे आई, पर यह स्थाई हल नहीं था, करना तो कुछ और था, बैचेनी का हल खोजना था।
मेट्रो स्टेशन पहुंच कर वो मेट्रो से ऑफिस पहुंची और प्रोजेक्ट एक नया हाथ में था, एक नई आश्रय स्थली बनाना, जहां झुग्गी के सभी परिवारों को आजीविका के साधन सीखना और शिक्षा देना, जिससे वर्तमान भी अच्छा हो और भविष्य की नीव भी।उत्पादन में इन लोगो को लगागर देश की अर्थव्यवस्था भी अच्छी होगी, नशाखोरी, भिक्षावृत्ति भी रुकेगी और शिक्षा का स्तर अच्छा होगा और देश झुग्गी झोपड़ी मुक्त।
मेट्रो की यात्रा से जाम और प्रदूषण भी खत्म और न जाने कितने को मिलेगा नवजीवन।
प्रोजेक्ट को आरंभ कर के, मन में एक की गीत था, "मेरे देश की धरती", आखिर क्यों न हो, देश का सर्वप्रथम संसाधन तो मानव ही है और चेहरे में थी संतुष्टि की मुस्कुराहट।