Arunima Bahadur

Abstract

4.5  

Arunima Bahadur

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भोर का संदेशा

भोर का संदेशा

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हां, खो गई है वो धरा,

मानवता जहां बसती थी,

प्रेम,करुणा,दया जहां,

जन जन में बसती थी।


आज दयाहीन मन,

और एक खोखला अस्तित्व है,

धन को पाने को,

आत्मधन को भूले है।


प्रज्ञा जब यहां है खोई,

धरा पर क्या हमे मिला,

प्रेमविहीन ,निष्ठुर सा,

विचरता एक मानव मिला,

बनाए न जाने कितने चोले,

व्यवहार और शालीनता के।


आचरण ऐसे बने पड़े

जैसे हो कीटको को,

पतन के गर्त में जहां,

घूम घूम सब गिर रहे,

देख वसुधा की ये दशा,


वाराह भी चल दिए,

प्रज्ञा के अवतरण के,

गीत सब अब रच दिए,

भाग रहा अब कालनेमी,


अंत समय जो आया,

भोर का संदेशा जो,

दिवाकर ले आया है।


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