बदल स्वरूप
बदल स्वरूप


हां, कोमल है तू नारी,
गुणों से, प्रेम से, करुणा से,
प्रकृति से जुड़ी हुई,
बस प्रेम लुटाती,
स्वयं ईश्वर की कृति है तू,
साक्षात मां है तू,
जिसे भेज दिया ईश्वर से,
इस वसुधा को सजाने,
पर याद रखना तू सदा,
तू अबला नहीं,
जिसे कोई भी दबा सके,
कोई वस्तु नहीं तू,
जिसे अपने मोल कोई ले सके,
कोई याचक नहीं तू,
जिसे कामिनी रूप दे,
हर कोई छल सके,
कभी वाणी से,
कभी बाल से,
कभी नैनों से,
तेरा सम्मान छल सके,
तू तो है,
मुक्त जीवात्मा,
इस सृष्टि की जननी,
भोग की वस्तु नहीं,
तो रोक दे अपना शोषण,
जिसे तूने स्वीकारा है,
अपना नारीत्व मान,
तज आज ये सब बंधन,
जो रोकते है तेरी आजादी,
स्वयं को जानने की आजादी,
जो तेरे अंतस में है,
तज अपना वह अबला, कोमलांगी का स्वरूप,
मिटा अब भोगवाद की नीति,
और झूठी स्वतंत्रता,
ला क्रांति अपनी स्वतंत्रता की,
विचारो की आजादी की,
पंख फैला उड़ने की आजादी की।।