हर एक भीड़ में भी मैं
हर एक भीड़ में भी मैं
हर एक भीड़ में भी मैं सबसे जुदा हूँ
कि ख़ुद अपनी मंज़िल का मैं रास्ता हूँ।
हर एक भीड़ में भी मैं सबसे जुदा हूँ....
मैं रिपुदमन दोस्तों का भी दुश्मन
मगर हर किसी से है मिलता मेरा मन
मैं हर दोस्ती दुश्मनी से जुदा हूँ।
हर एक भीड़ में भी मैं सबसे जुदा हूँ....
सभी मेरे अपने, नहीं कोई दुश्मन,
किसी से नहीं है मेरी कोई अनबन
मैं दिल से सभी को बहुत चाहता हूँ।
हर एक भीड़ में भी मैं सबसे जुदा हूँ....
पिनकता बहुत हूँ ये कहते हैं सारे
मुझे सब "पिनाकी" है कहके पुकारे
मगर मैं हूँ क्या, मैं ही ये जानता हूँ।
हर एक भीड़ में भी मैं सबसे जुदा हूँ....
मैं साहित्य का एक छोटा पुजारी
शब्दों के अश्वों की करता सवारी
दिन रात साहित्य ही सोचता हूँ।
हर एक भीड़ में भी मैं सबसे जुदा हूँ....
ग़ज़ल,गीत,मुक्तक लिखूं मैं कविता
बहाता नये नित सृजन की सरिता
कि मैं भाव रस में सदा डूबता हूँ।
हर एक भीड़ में भी मैं सबसे जुदा हूँ....
दिया खूब साहित्य ने मान मुझको
दिलाया है सम्मान,पहचान मुझको
मैं एहसान साहित्य का मानता हूँ।
हर एक भीड़ में भी मैं सबसे जुदा हूँ....
हर एक भीड़ में भी मैं सबसे जुदा हूँ
कि ख़ुद अपनी मंज़िल का मैं रास्ता हूँ।
हर एक भीड़ में भी मैं सबसे जुदा हूँ....
फिल्म - बेमिसाल
धुन - किसी बात पर मैं किसी से ख़फ़ा हूं