मेरे अश'आर
मेरे अश'आर
पेश-ए-ख़िदमत हैं मेरे पाँच अश'आर जिनके मिस्रा'-ए-सानी में अपने नाम "विवेक" का प्रयोग किया है
(१)
वो छोड़ गये हमें इस्तेमाल करके और हँसता हम पे ज़माना था।
बस यही ख़ता हुई की सोचा दिल से जहाँ 'विवेक' लगाना था।
(२)
वो अब हमसे कहते हैं की वफ़ा का था ना वादा ना कोई करार।
'विवेक' से सोचो क्या कोई किसी से करता है यूँ ही इतना प्यार।
(३)
तौबा मेरी अब न रुख़सत होंगे कभी जानिब-ए-जानाँ हम।
सुनेंगे सिर्फ अपने 'विवेक' की बहुत सह लिये तेरे सितम।
(४)
चलो अच्छा हुआ मोहब्बत में खो बैठे हम दिल को अपने।
काम लेंगे अब सिर्फ 'विवेक' से और देखेंगे कुछ नये सपने।
(५)
एक लम्हा कटता नहीं तो फिर ये उम्र कैसे गुजर जाती है।
वक़्त की ये अजीब चाल 'विवेक' की समझ नहीं आती है।