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Govind Narayan Sharma

Romance

4  

Govind Narayan Sharma

Romance

बेगुनाह बेकसूर

बेगुनाह बेकसूर

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हर बार बेकसूर रहा कोई गुनाह रह गया,

सारे तीर्थ नहाये पर एक तेरा दर रह गया! 


जिस जिस से भी मिला मुझे वो भूलते गये,

बस जहन में सिर्फ तेरा नाम कैसे रह गया!


जो कभी रूबरू मिली नही जहन में उतर गयी, 

वो शबनमी अक्स ख़्वाब बन के रह गया ! 


जिसकी चाहत थी अब वो गैर की हो गयी,

उसको भूल जाऊँ यही बस काम रह गया!


उसने वादा किया था कि फिर से मिलेंगे हम,

मैं उस पर हद से ज्यादा एत्तराम कर गया !


जुल्फों में लगाये गजरे की महक याद रही, 

कितने खिले फूलों का कत्ल हुआ ये भूल गया !


तेरे हर एहसान को ताउम्र जहन में याद रखूंगा, 

मेरे एहसानों को इतनी जल्दी कैसे भूल गया !


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