तेरा अफ़साना
तेरा अफ़साना
आओ चले, इन पगडंडियों से, उस दूर के पहाड़ तक
तुम्हें याद है.... क्या..? वो रास्ता ....... है, कहाँ तक
पत्थरों के उस रास्ते पर फिर चले ......वही तक।
आओ चले.....
पत्थरों पे पाँव रख के, कभी लड़खड़ायेंगे
तो कभी हंसते- हंसते संभल जाया करेंगे।।
आज हम जिंदगी से थोड़ी फुर्सत मांग लायेंगे
तुम बस हाथ पकड़ के, चलते ही जाना।।
क्योंकि..... मैं हूँ तेरा अफ़साना......
आओ चले......
इन बादलों के पीछे, बारिश में आज भीगे
बाहें फैला के, आँचल में बूंदों को हम सहेजे।।
आँखों से फिसल कर, जो होंठों पे ठिठक गई
उन बूंदों में तुम दोहराना, मेरे लिए गुनगुनाना।।
कि बस मैं हूँ तेरा अफ़साना........
आओ चले.......
सर्द दिनों की, इस दोपहर में।
मील दो मील चले, सूरज के हमसफ़र बने।
सर्द हुए सपनों को थोड़ी- सी गर्मी -सी दे।
फिर बैठ कर सोचे, जिंदगी के प्रश्नों का हल
जो धूप में सफ़ेद, नहीं किये थे, जो बाल।।
वो जिंदगी का तजुरबा था
इन हकीकतों का सफर तो बड़ा गहरा था।।
कुछ सोच कर फिर तुम पुकारना,
क्योंकि मैं ही तो रहा, तेरा अफ़साना।
आओ चले........
समंदर के उस किनारे तक,
आती -जाती लहरों की
टकराहट से पूछे
फैला हो, तुम तो मेरे ज़हन तक
मेरे मन से मेरी आत्मा तक
जीवन सच अनजाना
क्योंकि मैं ही था, तेरा अफ़साना।
आओ चले........ अब... .आओ चले।