मकडज़ाल
मकडज़ाल
एक कोने से दूसरे कोने तक
मकड़ी जाला बुनती रहती है।
तीसरे कोने में छिपकली छुप -छुप कर
उस पर निगाह रखती है।
चोथे कोने में अचानक....
एक पतंगा फड़फड़ाता है।
अनजाने में उस जाले में बिन सोचे उलझ जाता है।
छिपकली लपक कर दोनों को ग्रास बना लेती है।
जिंदगी और मौत की कहानी
फिर नये कोने से जाला नया बुनती है
उलझती और फड़फड़ाती है।
लाख कोशिश बाद भी,
मौत के मकडज़ाल से निकल नहीं पाती है।
जिंदगी... मौत और मौत जिंदगी को,
बस इसी तरह दोहराती है।