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Phool Singh

Romance

4  

Phool Singh

Romance

प्रेम मग्न

प्रेम मग्न

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बोलती बंद, शर्म से आंखे झुक गई 

जब प्रीतम से आंखे चार हुई

दिल की धड़कन तेज हो चली 

जैसे बिजली का हुआ वार कोई ||


मन्नते प्रार्थना रोज थी करती 

ईश्वर ने जैसे आवाज सुनी 

हार बैठी थी दिल जान जिस पर 

उस प्रीतम से आन मिली ||


रोज प्रेम के सपने देखे 

बातें खुद से करने लगी 

बिन पंख के नभ नाप ले 

नीड़ भी उसकी हराम हुई ||


ना देखे जो प्रीतम की सूरत 

अधीर बेचैन हर क्षण हुई 

इत-उत डोल वो खोजती फिरती

काम में भी उसका ध्यान कोई ||


सौगात प्रेम की मिल गई जो 

भावनाओ मे ही बह चली 

इश्क के समुद्र में गोते लगाती

 अब ना किसी का ध्यान कोई ||


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