कान्हा बन जाऊं
कान्हा बन जाऊं
मेरे मन को फिर से मासूम बच्चा बनने दो ,
आँगन में फिर से मस्ती से खूब मचलने दो!
घुटरन चलत ऊखल ऊपर झट चढ़ जाऊं,
छींके पर दही की मटकिया से माखन खाऊँ!
चोरी करत नवनीत सना मुख पकड़ा जाऊं,
मैं नही माखन खायो मैया मासूम बन जाऊं!
गुल्ली डण्डे कंचे सखाओ सङ्ग खेल छकाउं,
मिट्टी में सना तन मैया तुझ से लिपट जाऊं!
रुमाल झपटा सितोलिया खेल तंदुरुस्त होऊं,
नित उठकर भोर में खेतों में भ्रमण को जाऊँ!
नन्हे हाथों गौरी गैया को रोटी नित खिलाऊँ,
आँग
न में फुदकती गौरेया को दाना चुगाऊँ!
चूजों के जीवन हेतु मुँडेर पर घोंसला बनाऊँ,
सरगम सी चूँ चूँ मचल करतल तान बजाऊं !
जेठ की तपन में बेहाल खगवृन्द प्यासे पाऊँ ,
पखेरूओं के हलक तर को परिंडा भर आऊं!
मिट्टी की तख्ती खड़िया लेकर पढ़ने जाऊं,
तात की गह अँगुली नन्हे डग ठुमक जाऊं!
थकूँ राह में ग़र गोदी बाबा की चढ़ मैं जाऊँ,
बाल सखा सङ्ग माखन मिश्री भोग लगाऊँ!
तुम न आए तो क्या सहर न हुई हाँ मगर चैन से बसर न हुई,
मेरा रोना सुना ज़माने ने एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई !