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Govind Narayan Sharma

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Govind Narayan Sharma

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तपती धरती करें पुकार

तपती धरती करें पुकार

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तपती धरती करे पुकार सुनो नर और नार,

वृक्ष लगाकर तपती धरती का करो शृंगार!


तुझको बचाने की भरसक कोशिश करता हूँ, 

हरपल तेरे जलते दामन की चिंता करता हूँ !


बून्द बून्द सींचता हूँ जलती धरती बचाने को ,

वृक्ष लगा कर धरती माँ को हरीभरी करता हूँ!


कोई तो तरस खायेगा जलते हुए अंगारो पर,

अंजुली से आग बुझाने की कोशिश करता हूँ !


कौन हैं जहाँ में जो समझेगा दर्द तेरे जलने का,

अहर्निश उनसे तेरी अस्मिता की बातें करता हूँ!


कभी कोई आएगा प्यासा प्यास बुझाने को,

विराने में ठण्डी छबील का इंतजाम करता हूँ!


दूर तलक सहरा पसरा नग जमीदोज हो गए,

दावानल सुलगे मधुबन जिसे तीर्थ कहता हूं!

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बिन पानी पखेरू तरसे हलक तर करने को,

ताल तलैया रीते बंजर भू को माँ कहता हूं!


दामन छलनी पत्थर की पातालतोड़ खानों से,

माँ के आँचल को बचाओ कर जोर कहता हूं!


प्राण पखेरू उड़ रहे तोते ज्यों छूटे पिंजरे से,

साया ढूंढ दुबक गये इक दूजे की काया में !


उगता दिनकर अगन बरसावे दिशि प्राची में ,

मरुधरा की बालू सावन में धधके अंगारों सी!


रोको वसुन्धरा के दामन की अब बर्बादी को,

व्यर्थ जल दोहन से पर्यावरण बचाओ कहता हूं!


उजड़ गये चमन हवाएं तप रही बिन नीर के,

राही प्यासा जल बिन सूखी नदिया के तीर!


घर आँगन चौराहे पर भरपूर वृक्ष लगाओ,

मानव की उखड़ती सांसे बचाने की कहता हूं !



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