दिल का गिटार
दिल का गिटार
तरसता है दिल मेरा जब वह दूर जाते हैं
करीब होते आंखें उन्हें तरसाती
उनका यहाँ आना गज़ब होता
मालूम था है तुम्हारी बहुत सी मजबूरियाँ
तेरे बगैर नींद कभी ना आती जाने कैसे
कट रही थी रातें
गुनाह आखिर ये क्या हुआ था हमसे
क्यों हमें इस तरह तन्हा कर तुम
मझधार में छोड़कर हमें
जाने किस राह तुम क्यों
गए कि हमें सारा जमाना
चली गई अब वो रातें और दिन
नहीं शाम- ओ- सहर नहीं रहा
ये जग सूना लगता है अब तेरे बिन
सोचो उन आंखों का हाल जिसमें तेरे
नाम की दुनिया बसती थी और सजती थी
अब तो रूठ गए वह दिन और बाहर हमसे यूँ
जैसे कभी आये ही नहीं और देखते ही देखते
धुंधली हो गई वो सारी यादें अब तो लगता है
जैसे ख्वाबों में ही तुम मिलने आओगे हमसे
जिस तरह सूखे हुए फूल अब सिर्फ
किताबों में ही मिलती है।