उन दिनों तुम
उन दिनों तुम
उन दिनों तुम
खनकती चूड़ियाँ बजते बिछुए की
नव झंकार से
भरा रहता था घर
जब तुमने किया था गृह प्रवेश.
सर पर पल्लू सँभालते
चौंकना सकुचा जाना
ननद देवर की हठ का
यूँ हँस कर मान जाना
पैर छू बुजुर्गों का
आशीष पाना
आँखों में संतुष्टि की
मुस्कान का उतर जाना
वो मेरे देखने पर
लजा कर नज़रें झुकाना
पास आने पर सिहर जाना
तुम आज भी वही हो
खुद में संबंधों में और
परिपक्व
लेकिन तुम्हारा वह नवरूप
आज भी याद आता है मुझे ।