न
न
डेढ़ दो साल की हुई थी
घुंघराले बालों और गालों में गड्ढे वाली
खूबसूरत गुड़िया सी वह
कुछ टूटे फूटे तोतले शब्द
झरते फूलों से बोलती
दादी ने सिखाया सिर हाँ में हिलाना ।
पहली बार डाँट खाई उसने
जब भाई के लिये
पानी लाने को कहा न
क्योंकि कर रही थी पढ़ाई
माँ ने समझाया
घर के काम को नहीं करते मना
परिवार के लिये करना
सीखना है उसे।
सासु माँ ने मुंह दिखाई में
दे दिया मंत्र
परिवार को सहेजना
है इच्छा अनिच्छा से ऊपर।
कभी नहीं कर पाई किसी बात के लिए मना
कितनी भी हो असुविधा।
दुखती कमर मरते मन के साथ भी
हाँ ही निकलता हमेशा
चाहे कभी किसी ने नहीं सराहा
उसके इस समर्पण को।
उसने भी जन्म दिया था बेटी को
लेकिन उसे नहीं पढ़ाया हाँ न का पाठ
सीख ही लेगी समय के साथ
या सिखा देगी परिस्थितियाँ
उस दिन झल्लाई थी उसकी बेटी
मना करते नहीं आता आपको
सीखो मना करना नहीं तो मैं कर दूंगी
सहम गई वह रिश्ते बिगड़ने के डर से
और बटोर कर हिम्मत
जीवन में पहली बार कहा न
उसकी प्रतिध्वनि गूंजी चहूँ ओर
लेकिन उसने पहली बार
किया उसे विभोर
आज वह सच्चे अर्थों में
बोलना सीखी
खुद का होना महसूसा
जो उसे पिछली नहीं
अगली पीढ़ी ने सिखाया।