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Kavita Verma

Tragedy

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Kavita Verma

Tragedy

कल से खुलेगा

कल से खुलेगा

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कल से खुलेगा

एक ऐसी खबर थी जिसका विश्वास

यकायक करना कठिन था। 

विश्वास तो फिर भी करना ही था

टीवी अखबार सोशल मीडिया

भरे पड़े थे इसी एक खबर से

फोन पर आती आवाजें


कर रही हैं बात इसी के बारे में

कानों में ही नहीं

दिमाग दिल धड़कनों

और सारे ब्रम्हांड में गूंज रही है

एक ही खबर

कल से खुलेगा।


खुशी के मारे नहीं आ रही नींद

हजारों हजार आँखों को

नहीं है चैन सोच सोच कर

कि कल से खुलेगा तो

क्या-क्या करेंगे?

पहले चक्कर लगाएंगे बाजार का

या किसी पिकनिक स्पाॅट पर

गिरते झरनों के नीचे

प्रकृति को निहारते सुख उठाएंगे। 


खोल कर दुकान करना होगी साफ-सफाई

कुतरे गये और सड़ गये 

सामान का करना होगा आकलन

आगे की उधारी की

करना होगी व्यवस्था

गाँव चले गये नौकर का तलाशते विकल्प।


अब फल सब्जी मिलेंगी आसानी से

आने लगेगी काम वाली

घर फिर करने लगेगा

लौटने वालों का इंतजार।


दो बूढी आँखें शून्य में ताकती

देखते जमाने की खुशियाँ

इस खबर पर कि कल खुलेगा

सोच रही हैं

क्या खुल सकेंगी अपनों को

सामने देखकर बाहें


क्या खुल सकेंगे दरवाजे अब

दूरदराज के रिश्तेदारों और अजनबियों के लिए

क्या खुल सकेंगे बटुए अब

कल की चिंता को परे हटा कर

क्या खुल सकेंगे दिल पर जडे

डर के ताले

जिनके पीछे कैद हैं

विश्वास और निश्चिंतता।


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