मीरा की पीड़ा
मीरा की पीड़ा
Prompt- 25
सहरा में चलते-चलते
तन्हा जब थक गयी
जहनो दिल पर कोई
तिश्नगी गुजरने लगी
बारहा ऐसा होने लगा
और एक अजाब सा आ गया
सहरा के उस धुंध में
संगीत में खोई मैं
उनकी सूरत दिखी तो
चाँद वहाँ रौशन हुआ
वह एक दास्ताँ बन गया
याद नहीं कब उनके ख्वाब
मेरी आँखों में कैद हुये
फिर बरस पड़े दो बूँद
सूखे सहरा की गलियों में
पता नहीं फिर कब
सहर हुई कब रात हो गई
चलते-चलते सहरा में।