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Kanchan Prabha

Horror Thriller

4  

Kanchan Prabha

Horror Thriller

साया

साया

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चुपके से आई, बिना आहट के,

साँझ के साए में कोई ताके।

हवा में गूँजे धीमी फुसफुसाहट,

कौन है वहाँ? कोई न जाने।


झील का जल काँप रहा क्यों?

राहगुज़र पर परछाईं किसकी?

टहनी हिली, पर कोई नहीं,

चाँदनी भी हो गई धुंधली।


 दीवारों पर कुछ छायाएँ डोले,

दरवाजे खुद-ब-खुद क्यों खोले?

मिट्टी पे हैं पदचिह्न दिखे कई,

पर चलने वाला दिखे नहीं।


 घड़ी की सुइयाँ रुकी हुई हैं,

समय भी जैसे ठहरा सा है।

आईने में कोई और खड़ा,

या ये मेरा ही अक्स नया?


 कोई पुकारे नाम मेरा,

पर आसपास कोई नहीं खड़ा।

सर्द हवा का हल्का झोंका,

सिहर उठे मन, थमे धड़कन।


 अँधियारे को चीर के देखूँ,

कुछ दिखता है, कुछ खो जाता।

ये छाया है या कोई साया?

रहस्य में सिमटा हर तारा।  


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