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V. Aaradhyaa

Abstract Horror Thriller

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V. Aaradhyaa

Abstract Horror Thriller

मुक्ति कैसे ज़ब हो मोह

मुक्ति कैसे ज़ब हो मोह

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माया, ममता, मोह में,फँसा आज का जीव।

इसी लिए दूषित  हुई, धर्म, कर्म की नींव।


पथ विचलित करते सदा,माया, ममता मोह।

अन्त समय इस पंथ पर,मिलता मुक्ति बिछोह।


माया, ममता, मोह का, अगर न पड़े प्रभाव।

जीवन मे कटु - सत्य का,होता नही अभाव।


माया, ममता, मोह की,धुरी बहुत कमजोर।

इसी भोग से हैं ग्रसित,लोभी, लम्पट चोर।


माया, ममता, मोह  में, गया  कौरवी वंश।

शकुनी के इस प्रेम से,बचा न कुल में अंश।


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