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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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सत्यपथ

सत्यपथ

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सत्यपथ धर्मपथ न्यायपथ

रक्तरंजित लथपथ-लथपथ

डर-डर के डर से मर-मर के 

जीने से ना जीना बेहतर 

छोड़ सब, दे अस्तित्व को नया मोड़

जब सत्य कहना हो मुश्किल

जब झूठ झेलना हो मुश्किल

चिंता नहीं चिंतन जरूरी है

समझौता नहीं विद्रोह जरूरी है

क्या बदला, क्यों बदला, कैसे बदला

बदल डालो जिसने सब बदला

असत्य का कोई अस्तित्व नहीं होता

सत्य कभी अस्तित्व विहीन नहीं होता

तत्वबोध का अभ्यास करो 

आत्मबोध का प्रयास करो

भूली बिसरी बातें याद करो

सहेजो राम का धनुष ,राणा का भाला

मर्यादा के लिए, राष्ट्रवाद के लिए

दरकिनार करो फटी सेक्युलर चादर

छुपाया जिसने तत्वहीन अहिंसा

बढ़ाया जिसने सत्यकाम हिंसा

याचना से मिलती क्षमा, विजयमाल नहीं

सपने के राह मिट जाने का मलाल नहीं

रोके ना रुको, झुके ना झुको

बढ़े चलो चले चलो चले चलो

सत्यपथ धर्मपथ न्यायपथ

सत्य ही धर्म है ,धर्म ही सत्य है!!

सत्यपथ धर्मपथ न्यायपथ

रक्तरंजित लथपथ-लथपथ ।।



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