बंधन मे हो बाध्य नहीं
बंधन मे हो बाध्य नहीं


मानो तुम, बंधन मे हो बाध्य नहीं
मन चाहे तो कुछ भी असाध्य नहीं
मिथ्या भ्रामक विभाजक सब
मत पंथ जाती की जंजीरें
अगड़ी पिछड़ी ,छूत अछूत की लकीरें
कभी कहीं किसी को
कहना नहीं, समझना नहीं
पत्थर के दुब
हथेली के सरसो
गूलर के फूल
डरने लगो जब जंजीरों और लकीरों से
पी लेना प्याला राष्ट्रप्रेम की मधुशाला से
भयमुक्त बन ,उपयुक्त बन , बढ़ चल
विश्वास कर ,जाएगा हर संकट टल
अतीत से सिख,वर्तमान बदल, स्वप्निल उम्मीद कर
राष्ट्र प्रथम,समरस समाज, एक सुर संवाद कर
इतिहास में जीना नहीं, इतिहास बनाना होगा
सदगुण संरक्षण नव लय ताल अपनाना होगा।
पीकर राष्ट्रप्रेम का प्याला कहता मतवाला
मातृभूमि के लिए खप जाता भाग्यवाला
मानो तुम, बंधन मे हो बाध्य नहीं
मन चाहे तो कुछ भी असाध्य नहीं ।।