Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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पीर

पीर

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1

संस्कार

मिलता नहीं

किसी बाजार में

कब समझेगा 

समाज ।

2

जवान

बेटी बहू

भेंट चढ़ती सर्वत्र

अमर्यादित संकीर्ण

बलिवेदी।

3

अविलम्ब

बंद हो

अवांछित अहंकारी असभ्य

रूढ़िवादी मानसिकता

सहयोग ।

4

बदलना

होगा पैमाना

दर्द मापने का

होगा फिर 

बदलाव ।

5

खाँचा

बनाना छोड़ो

मेरा तेरा उसका

अनुभूत श्रुत

पीर ।।



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