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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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मैं नहीं जानता

मैं नहीं जानता

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इस अनोखी दुनिया मे

जो भी है जैसा भी है

है आधी हकीकत आधा फसाना

कुछ जानते नहीं , कुछ मानते नहीं

दोनों अड़े हैं , खडे हैं

अज्ञानता के एक ही धरातल पर

खोजे नही मिलते कहनेवाले

" मैं नहीं जानता "

यह जानना कि नहीं जानता 

जान जाने की, जान पाने की

पहली और आखिरी शर्त है

मेरा घर ही शहर का आखिरी घर नही

जिसमे एक कमरा कम है

 छुपाकर रखने के लिए

अपने भाव अभाव और स्वभाव को

पहले वक्त चुराकर मिलते थे

अब वक्त निकालने की फुरसत नहीं

कठिन होता है सुनना

मधुर जीवन संगीत

अंतर्विरोधी तटों की

टकराहट मे कोलाहल मे 

उलझा रहता तीन सवालों मे

सही समय कौन ?

सही काम कौन ?

सही व्यक्ति कौन ?

कल ,आज और कल के लिए

अपने और आप के लिए

मैं नहीं जानता !!

फिर भी

जिज्ञासा बचाकर रखी है ।।


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