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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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सैन्यवधू वेदना

सैन्यवधू वेदना

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थी दो अंतरंग सहेली, लिली और मिली

एक साथ कुंवारी डगर चली

सतरंगी सपने भी समरूप रहे

बिटिया से बहू तक सफर एकरूप रहे

शादी के मोड़ पर अलग राह हुए

प्रणय सूत्र में बंध

लिली नेता की हो ली

मिली सैनिक को मिली

दोनों अपने प्रियतम की दूसरी प्यार बनीं

नेता का पहला प्यार पैसा था

सैनिक का पहला प्यार मातृभूमि थी

एक अपने प्रियतम से शर्मसार थी

दूसरी अपने प्रियतम पर न्योछावर थी

एक का पति पास पर दिल साथ नहीं

दूसरे का नजरों से दूर पर धड़कन एक रही

सीमा पर सैनिक जूझता सहता झेलता रहा

विपदा आपदा प्रहार प्रतिघात

मिली का हृदय बना रहा युद्धस्थल

कभी चाहतों का तूफान

कभी अनहोनी की आशंका

कभी मिलन की आशा निराशा

महसूसने के लिए दर्द प्रियतम का

खिड़की खोल भर लेती झुलसन

नहीं जलाती कभी अलाव

होली दीवाली लौट जाते खाली हाथ

बिछुआ कंगन काजल छुपा दिया

क्या छूना तुम बिन पिया

सपने में देख मुझे दुखी होते जो तुम

सपना देखना छोड़ दिया

तुम मिलन आए जैसे, आता क्या कोई?

रो भी ना पाई, तिरंगे में लिपटी देख परछाई

यकीन मानो, मैं नहीं पछताई

पहुँचो तुम वहाँ मैं जल्द आई ।।


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